स्याह

स्याह

अंधेरा कुछ पलों के लिए ही होता है, क्योंकि वह ज्यादा देर तक टिक ही नहीं सकता है। हर रात का अंत सूरज की पहली किरण के साथ ही हो जाता है। इसी तरह जीवन में आनेवाली विपदाओं का भी अंत शीघ्र ही जाता है, क्योंकि वे सदा के लिए नहीं होतीं। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी की यह कविता भी सकारात्मक संदेश दे रही है।

स्याह अंधेरा उजालों से दूर जाएगा।
प्रेम भी जरूर प्यार से ही मुस्कुराएगा।
प्रियतम को कसक होती है विरह की।
विरह मिलन से ही दूर हो पायेगा।
दिन रात निहारती है धरती गगन को
प्रेम की ही बूँद से वह शीतलता पायेगी।
राही भी पथ चलकर बहुत व्याकुल है,
मंजिल पर पहुँच कर ही आराम पायेगा।
स्याह अंधेरी रातों से क्या किशन डरना।
राधा के प्रेम से श्याम हृदय में रौशनी भर जाएगी।।

~ डॉ.  कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’

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