श्रमिक!
न घबराये, श्रम से
मेहनत करता है
दम-खम से।
फिर!
चूल्हा कल जलेगा घर पर
चिन्ता उसको यही सताये।
श्रमिक!
श्रम की गर्मी से
पिघला लोहा
आकार है देता।
खेतों में, कारखानों में
खून जलाता
पसीना बहाता।
सुस्ता ले
जो पल दो पल
साहब! उस पर है चिल्लाता।
श्रमिक!
उपेक्षित
शोषित-पीड़ित;
अपना भी,
हक़ न पाता
मुनाफा, पूँजीपति कमाता।
~ अमित कुमार चौधरी