कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की एक खास रचना जिसमें वे बताती हैं की कवितायें हमें रचतीं हैं। विश्व कविता दिवस के अवसर पर उनकी इन पंक्तियों को अवश्य पढ़ें।
गलतफहमी थी हमें कविता को हम सब रच रहे
एहसास खुद को अब हुआ कविता हमें ही रच रही।हमें मिल रहा सम्मान जो साहित्य के इस क्षेत्र में
खुद की नहीं कोई देन है कविता ये खुद ही बढ़ रही।कविता कोई कैसी लिखो बस भाव उसका सत्य हो
शब्दों को चुनने के लिए खुद क़लम अपनी चल रही।कविता के जरिए भाव अपना हर कोई रखता ही है
वही भाव पाकर कविता ये हम सबको ही तो रच रही।कोई दर्द का एहसास हो या हो कोई जज्बात ही
खुद में पिरोकर शब्दों को कविता हमारी रच रही।~ साक्षी सांकृत्यायन
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