हे मातृ भूमि

हे मातृ भूमि

मातृभूमि से सभी को लगाव रहता है। हर इंसान के मन में इस मिट्टी के प्रति आदर का भाव सदैव रहता है। कलमकारों कर्मवीर कौशिक की यह कविता भी उन्ही भावों को शब्दों में दर्शाती है।

हे मातृ भूमि तेरे वीर सपूतों की गाथा मैं यूंहि गाऊंगा
तेरी मिटटी मे जन्म लिया तेरा कर्ज मै कैसे चुकाऊंगा॥

दुश्मन की छाती माँ मैं रौंद कर दिखलाऊंगा,
तेरी तरफ कोई ऊंगली कर दे, माँ हाथ उसका उखाड मैं लाऊंगा,
तेरे चरणों की शौगंध है माँ मुझे,
मैं तेरी शान को नीचे नही झुकाऊंगा॥
तेरी मिट्टी में जन्म लिया…

गर्मी शर्दी ओर बरसात माँ तेरी सल्तनत मे मिलती,
मैं हर मौसम हर जंग हर लडाई से लडता जाऊंगा।
तेरी हिफाजत में मैं माँ शूली पर भी चढ जाऊंगा,
पर तेरे नाम को माँ मैं सोने की तरह चमकाऊंगा॥
तेरी मिट्टी में जन्म लिया…

तेरी खातिर माँ मैं अपना शीश भी कटवाऊंगा,
हंसते हंसते भारत माँ तेरे लिए मैं फाँसी पर भी चढ जाऊंगा।
पर दुश्मन की गोली माँ मैं सीने में ही खाऊंगा,
जंग में माँ मैं कभी अपनी पीठ ना दिखाऊँगा॥
तेरी मिट्टी में जन्म लिया…

लडता रहूँगा मरता रहूँगा अपने तिरगें की खातिर ,
हर बार उस माँ की कोख से जन्म लूँगा, तेरी ईज्जत की खातिर ।
हे माँ तेरा सदा सत्कार रहें, तेरा मुझ पर सदा अधिकार रहें,
तेरे अभिमान मे वन्दे मातरं-वन्दे मातरं गाता जाऊंगा॥
तेरी मिट्टी में जन्म लिया…

भारत माँ का वीर सपूत मैं तेरे ही गुण गाऊंगा,
भारत माँ की जय, भारत माँ की जय, इस घोष का जयकारा मैं लगाऊगाँ ।
हे मां मै तेरी रणभूमि में लडता-लडता मर जाऊंगा,
अपने तिरगें में लिपटकर माँ मैं वीरगति को पाऊंगा,

इस तरह हे माँ मैं तेरी मिट्टी का कर्ज चुकाऊंगा
हे मातृ भूमि तेरे वीर सपूतों की गाथा
मैं यूंही गाऊंगा दासता मैं यूंही सुनाऊंगा।।

~ कर्मवीर कौशिक

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