कलमकारों अभिषेक प्रकाश लिखते हैं कि कभी-कभी मन करता है कि सारी उम्र सिर्फ उसी के बारे में लिखते रहें। आखिर क्यों न लिखें वह इतना भाता है कि दूसरा कुछ सूझता ही नहीं है।
सोचता हूँ ताउम्र तुझपे लिखूं!
वो तेरी अदायें लिखूं
या तेरी नशीली आँखों को लिखूं
वो तेरा सँवरना लिखूं
वो तेरा बेवज़ह भड़कना लिखूं
सोचता हूँ ताउम्र तुझपे लिखूं!
मगर…
तुने तो हर दफ़ा मुझे जख्म दिया है,
अब तु ही बता
तेरे दिल को कैसे सफा़ लिखूं?
वो तेरा बिना किसी वजह के,
मुझे छोड़ के चले जाना,
बता किस तर्ज पर तेरा इश्क़-ए-वफ़ा लिखूं!
मेरे इश्क़ के पन्ने अब दहाड़ मार के रोते हैं तेरे नाम पे,
अब जब भी उसमें तेरा जिक्र करुं
हर बार तुझे बेवफ़ा लिखूं!
सोचता हूँ ताउम्र तुझपे लिखूं!~ अभिषेक प्रकाश