कलमकार विजय कनौजिया की एक कविता पढ़िए। अपने साथी से आप अपने मन की बात जताते हो और कभी-कभी मन बोल उठता है- अब रुला दीजिए।
आप यादों में
मुझको बसा लीजिए
इतना कहना मेरा
मान भी लीजिए..।।मुझको भी कुछ सहारा
मिले आपका
मीत अपना मुझे भी
बना लीजिए..।।यूं अकेला समय
मुझसे कटता नहीं
अपनापन कुछ तो
मुझसे जता दीजिए..।।मेरी अभिलाषा के
पुष्प खिल जाएंगे
आप थोड़ा सा बस
मुस्कुरा दीजिए..।।अंतर्मन में घुमड़ते
घने बादल हैं
कहना मानों मेरा
अब रुला दीजिए..।।
अब रुला दीजिए..।।~ विजय कनौजिया
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