इमरान सम्भलशाही की एक व्यंग्य रचना, जो कहतें हैं कि हमारी प्रतिक्रियाओं से कोरोना भी दर गया। किन्तु हम सभी को सजग रहने की आवश्यकता है।
हुंकार दे दिया, कुर्ता संग पहना जॉकी है
गिलास सज़ गई, देखो दूर खड़ा साकी हैबापू चल दिए, अम्मा संग बचवा साथी है
आभार दे दिया, देखो खड़ी बूढ़ी काकी हैशंख बज पड़े और घटना घंटी की घट गई
सुषमा दीदी प्रसन्न सी, चमक रहा रॉकी हैमुहल्ले जुट गए, लड़कन की फ़ौज जुट गई
पड़ोसी जुट गए, डाली लटका सुलाकी हैसरकार खुश हो गई, आभार के तरीकों से
ट्विटर ट्वीट हो गए, सोशल मीडिया ताकी हैबछीवन गाय हो गई, पड़ीवन भैंस हो गई
मुर्गी मुर्गा को पकड़, बिलाई कुतवन हांकी हैरस्सी सांप हो गई, ग्लेशियर भाप हो गई
समुंदर रेत सी जमी, रेंगत रोज़ तैराकी हैकोरोना डर गया है, इंडिया के गलियारों में
पांच बज गए, थाली पीटा जाना बाकी है~ इमरान सम्भलशाही
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