जवानी के उन्माद में निकल आया बाहर
गली मोहल्ले चौराहों पर फैला था जहर
गलतफहमी थी मुझे कुछ न करेगा कोरोना
आईसीयू में अपनी करनी पर आ रहा रोना।
कोरोनो के चपेट से मौत सामने हैं खड़ी
अपनों को दे दूँ संदेश साँसे इसलिए हैं अड़ी
मैने कर दी गलती पिताजी आप मत करना
नालायक बेटे की खातिर आँसू न बहाना
बहुत पाल रखे थे सपने मैंने पल में टूट गए
कोरोनो ने क्षण में जिंदगी के पन्ने बिखेर दिए
विनती हैं पिताजी भीड़ इकट्ठा मत करना
अंतिम संस्कार मेरे आप भी शामिल न होना
मेरे हिस्से की जायदाद अब भाइयों को देना
उनसे करता हूँ विनती सभी घर में ही रहना
मेरी प्यारी बहना एक राखी कम ही लाना
कितना भी आये रोना मेरे हाथ न लगाना।
मृत्यु की सेज पर करता हूँ सबसे विनती
कोरोनो देश धर्म जाति की करता न गिनती
कोरोनो से जंग में सब को हिम्मत दिखानी हैं
घर में रहो इससे बचने की आख़री निशानी हैं।
~ महेन्द्र परिहार “माही”