कालजयी अनमोल दोहे (18)

कालजयी अनमोल दोहे (18)

भारत के संतों द्वारा रचित कुछ दोहा काव्य जिनके अर्थ सभी को भली भाँति पता हैं। इन अनमोल दोहों में जो ज्ञान/शिक्षा की बातें बड़ी सरलता से बताईं गईं वह अतुलनीय है।

करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान॥
~ वृंददास

प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत, प्रेम न जानत कोई।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोई॥
~ रसखान

पहिला नाम खुदा का, दूजा नाम रसूल।
तीजा कलमा पढ़ि नानका, दरगाह परे कबूल॥
~ गुरु नानक देव

राम नाम की लूट है, लूट सकै तो लूट।
अंतकाल पछतायेगा,जब प्राण जायेगो छूट॥
~ तुलसीदास

बावन अक्षर सप्त स्वर, गल भाषा छत्तीस।
इतने ऊपर हरि-भजन, अनअक्षर जगदीश॥
~ संत रज़्जब

हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम॥
~ संत पीपा

बखना हम तो कहेंगे, रीस करो मत कोई।
माया अरु स्वामी पणी, दोइ-दोई बात न होइ॥
~ संत बखना

जहाँ कलह तहँ सुख नहीं,कलह सुखन को सूल।
सबै कलह इक राज में,राज कलह को मूल॥
~ नागरीदास

जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
~ बिहारीलाल

खुसरो ऐसी पीत कर, जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने, जल जल कोयला होय॥
~ अमीर खुसरो

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
~ रहीमदास

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर।।
~ कबीरदास

ऐसा चाहूँ राज मैं, मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।
~ रैदास

अमिय हलाहल मदभरे, सेत स्याम, रतनार।
जियत मरत झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत इक बार॥
~ रसलीन

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कह गए, सब के दाता राम॥
~ मलुकदास

कोटी-कोटी मतिराम कहि, जतन करो सब आय।
फाटे मन अरु दूध मैं, नेह नहीं ठहराय॥
~ मतिराम

पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी, याद पड़ै जब नाम।
लगन महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम॥
~ पलटूदास

सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार।
प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार॥
~ दादूदयाल

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