एक ओर, कोरोना को हराना है
घर से बाहर, ना जाना है
नियम हमारे हित, हेतु है
पर, बहुत कम जन मान रहे
जीवन को बचाना, प्राथमिकता है।
पर, दुविधा यह भी है
मजूर वर्ग, क्या खाऐंगे ?
रोज जो कमाते-खाते हैं
इक्कीस दिन कैसे वे घर चलाऐंगे ?
कोई व्यवस्था, इसकी भी हो
चिंताजनक इस, स्थिति में
कौन किसे संभालेगा?
कौन गरीब मजूर का, पेट पालेगा?
घोषनाएं अनेक होती है
पर, आम आदमी तक कितना कुछ पहुँच पाती है ?
यही बात गरीबों को नहीं सोहाता
रोजमर्रा की चीजें दुगुने-तिगुने में बेचा रहा
हम जैसे आर्थिक तंगी वाला, ना खरीद पा रहा।
कैसे जीवन, बिन भोजन संभव है ?
बिन खाए जीना, असंभव सा है
पूँजीपति वर्ग, खूब कमा रहा
ऐसे दौर में भी, मानवता नहीं रहा
स्वार्थ स्वंय का, साध रहे
ऐसे में लोग है भ्रमित सा।
फायदे अनेक, लॉक डाउन के
संक्रमण को,रोकना है
अमूल्य जीवन को, बचाना है
इस भारत को, फिर से सजाना है।
मानव जाति की, रक्षा का प्रयास है
पर, गरीब के लिए कौन सी आश है?
मदद यदि, उन्हें मिल पाए
सब ठीक, तब हो जाए
ग्राम-गंज में ना, फैल जाए
संक्रमण ना फैल पाए।
फायदा अधिक, नुकसान भी है
पर, फिर भी फायदा हमारा ही है
नुकसान को, नजर अंदाज करो
कोरोना को ही है, भगाना
पहले, उसका मिलकर विनाश करो।
~ पूजा कुमारी साव