जब मैं निकलता हूँ
भीड़भाड़ गलियों से
तो एक डर सा लगा रहता है
रोशनी से जगमग भीड़ वाली
दुकानें मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशान करती है
बिना मास्क लगाए लोगों के चेहरे
भीड़ का नहीं बनना चाहते हिस्सा
दूर होना चाहता हूं इस डर से
हमें विस्फोटक समस्या को समझना है
इसके बचाव का प्रयास हमें करना है
दूर कर पाएंगे तभी हम इससे निजात
आओ हम अलख जगायें
कोरोना से सब को बचाएं
आतंक इसका दूर करें हम
प्रयास से निकले इसका दम
न हो किसी की आंखे ही नम
अजीब सा वायरस है ये
बडा ही घातक है ये
हाथ बार बार धोने से दूर ये
खाँसी से दूर रहना है
छींक से बचके रहना है
दूरी बनाए अब रखनी है
नहीं नज़दीक अब जाना है
नजदीकी चाहे रिश्ता उससे
या सम्बन्ध ही दूर का हो
बस स्वच्छता का ध्यान रखना है
चीन से शुरू होकर
सारे विश्व मे फैला है
आतंक इसने ऐसा किया है
महामारी का रूप लिया है
भारत में पहुंचा है अब यह
भय इसने बहुत फैलाया है
गले हमें नही मिलना है
हाथ आपस मे नही मिलाना है
नमस्कार से अभिवादन करना है
दूरी संक्रमित से बनाये रखनी है
बस घबराना ज्यादा नहीं है
सावधानी का पालन करना है
स्कूल भी बंद हैं इसके भय से
मॉल सिनेमा बन्द इसके डर से
कारोबार ठप हैं घबराहट से
विश्व जूझ रहा है मंदी से
भारत भी अछूता नहीं इससे
डरना नहीं है इससे हमको
लड़ना होगा इससे हमको
साफ सफाई रखनी होगी
स्वच्छता हमें बरतनी होगी
मुंह पर मास्क लगाना हैं
सबको यह बतलाना हैं
हाथों को धोना बारमबार है
साबुन को रखना पास है
ठेंगा इसे दिखाना है
बच्चा अब बन जाना है
कोरोना के इस बीमारी को
जड़ से हमें मिटाना है
~ मुकेश बिस्सा