लॉकडाउन में बैठे बैठे

लॉकडाउन में बैठे बैठे

लॉकडाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर
कोरोना नाम से चीनी
चाचा, दे गए ज़हर

कुछ मत सोचो भाई
आओ चलें, किचेन
दूध, दही, संग खाना
खाएं, दूर रखेंगे हेन

आओ चलो मलाई कांटे
अपने रसोईघर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

मत निकलो, बाहर कोई
वहां पुलिस खड़ी है
बंदा कोई नज़र ना आए
ड्यूटी में वो अड़ी है

देखते नही
वीरान हो गया सारा शहर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

फल फूल मेवे घी
है, खूब जमे सभी
आलू, चिप्स, चटनी संग
में, खा लो अभी

क्या कभी तुम, इतने दिन
गुजारे हो घर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

चाय बना के चूड़ा संग
लो, मज़े से चुस्कियां
टांग फैला के दाना चबाओ
और चना की छीमिया

जितना खाओ, रोज़
उतनी ही कसरत भी कर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

भौजी से बनवाया जाय
मटर संग आलू पराठा
पसंद की पिक्चर लगा
के, खाया जाय पराठा

अब तनिक भी उठकर
भौजी से, प्रणाम तो कर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

बिल्ली मौसी भूखी
हो, कर रही है म्याऊं
बिस्किट खिलाओ
और पूछो, मौसी दूध पिलाऊं

तभी बकय्या बकय्या करते
दिख गया नुरे-नज़र
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

साहिल भइया तरस रहे
है, हो सुंदर सी डॉगी
ऊपर नीचे मचल रहे
है, पहने हुए जॉकी

ज़िद करते है अब्बू से
उन पर नहीं असर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

घर के नीचें बाबा भी है
सोए नंग धड़ंग
सोने को खटिया नहीं
चलो, दे आएं पलंग

रात भर सड़क किनारे
सोए रहते निडर
लॉक डाउन में बैठे बैठे
कोई नहीं सफर

~ इमरान सम्भलशाही

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