गर बाहर नहीं जा सकते,
तो अन्दर जाओ।
खुद को ढूंढने में,
खो जाओ।
रफ़्तार को रोक कर,
थोड़ा थम जाओ।
मानव तुमने ही, की हैं ये हलचल,
अब सम्हल जाओ।
सोचो क्या भूल हुई,
अपनी गलती फिर ना दोहराव।
गगन में उड़ान भरते किसी पक्षी को,
अब ना सताओ।
प्रकृति हम सबकी जननी हैं,
ये भूल ना जाओ।
मानव से दानव जो बने थे
अब ज़रा ठहर जाओ।
घर पर परिवार संग,
थोड़ा समय बिताओ।
हां मिलेंगे सभी,
खिलेंगे सभी,
उस मिलने के लिए,
फ़िर खिलने के लिए,
इस बार ठहर जाओ।
इस बार ठहर जाओ।
~ पूजा कुमारी बाल्मीकि