लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं

लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं

कभी कभी किताबों में हम जिंदगी ढूँढ लेते हैं.
कभी टीवी पर हम रामायण, महाभारत देख लेते हैं.
तेरी याद आते ही कोई गीत गुनगुना लेते हैं.
लाकडाउन में भी खुशी ढूँढ लेते हैं.
पूरे परिवार संग अब जिन्दगी का मज़ा लेते हैं.
कभी अपने बच्चों संग हँसते तो कभी गा लेते हैं.
जिंदगी ऐसे ही कट रही है, हम संजीदा नहीं होते हैं.
प्यारी पत्नी की पलकों तले सुख का छाँव ढूँढ लेते हैं.
अब दुनिया को क्या ढूँढना हम अपनी दुनिया ढूँढ लेते हैं.
इक्कीस दिनों की है बस बात दो चार दिन ऐसे काट लेते हैं.
हम भँवर में भी बचने को किनारे ढूँढ लेते हैं.
आशिक मिजाज है हम आशिकाना ढूँढ ही लेते हैं.
दोस्तों से बचने का बहाना ढूँढ लेते हैं.
दिलवर से दिल लगाने का ठिकाना ढूँढ लेते हैं.
हम वो परवाने है जो शमा को ढूँढ लेते हैं.
इस विनाश में भी बचने का आशियाना ढूँढ लेते हैं.
मीरा ने कहा कन्हैया से हम ‘किशन’ को ढूँढ लेते हैं.

~ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.