हुआ यूँ, ‘अप्रैल’ में एक ‘फूल’ मिला,
संग उसके इसके एक शूल मिला।
आगाज़ किया उसने मोहब्बत का,
ज़माने भर का है उसूल मिला।।
अप्रैल में एक फूल मिला…
उनकी बातें थी कोंपले जैसी,
लहज़ा उनका कड़क तने जैसी।
प्यार किया अटूट मैंने, भटक रहा दर-बदर,
सिला तो जरूर मिला।
अप्रैल में एक फूल मिला…
बता दो हमें ये कि,
दिल को क्यों सताते हो।
हमने भी मजबूत किया है खुद को,
अरे जाओ ये किसको मूर्ख बनाते हो।।
– अनुराग मिश्रा ‘अनिल’