पलायन इन्सानों का नहीं इंसानियत की है
जंग लगी रहनुमाई और सड़े सियासत की है।
अब तो बात हद से भी है आगे निकल चुकी
अब कहाँ यारों काबू में सब ज़्म्हुरियत की है।
दोषारोपण के खेल में हैं माहिरों की जमातें
किसको कितनी चिंता यहाँ आदमीयत की है।
क्या बताएं कितनी तंगहालि में लोग जी रहे
किस कदर किल्लत आज नेक नियत की है।
बेकार में अजय तू भी क्या बकवास है करता
खुदगर्जी में लिपटी लाश ये मासूमियत की है।
~ अजय प्रसाद