ये सड़को पड़ी सन्नाटे
कस्बो मोहल्लों पड़ी निस्तब्धता
दुकानों पर पड़ी ताले
गलियों पर वीरान पड़ी मंजरे
बता रही है कि
ये जिंदगी पे आयी कितनी बड़ी विपदा है
ये महामारी के बाद आई त्रासदी की तस्वीरें है
पर हमने घरों पर बैठने की कर ली अब तैयारी है
अब घर पर बैठ कर ही इस जंग से लड़ने की तैयारी है
हर पल आँखों में भय और दिलो पे सिसक उठ रही है
जब जब कानो पर एक मौत की खबर आ रही है
कह रही है दुनिया सारी इसका न कोई दवाई है
सतर्क हो जाओ वरना तुम्हे भी ले डूबने की इस महामारी की तैयारी है
मगर समय साक्षी होकर पूछती हमसे बारी बारी है
मानवता ने प्रकृति पर जुल्म कितनी ढाई है
इन सब के बावजूद भी
ये शहरों के सन्नाटे से भागती आँखे
गाँव के उस हरियाली और सुकून के साँसों की ओर
जाने के लिए हर पल बेताब बनी बैठी है
माना ये वक्त बुरा
चारो तरफ अंधकार ही अंधकार छाया है
पर कहता ये मन हमारा रख हौसला
वो मंजर भी आएगा
अंधकार को चीरता दीपक भी जल जाएगा
कल फिर से सूरज खिलेगा
फिर से नन्हे होठो की मुस्कान
गलियो पर खेलता दिखेगा
फिर से चाय की दुकानों पर
देश विदेशों की बहस चलेगी
दुकानों पर फिर से लोगो की
सैलाब उमड़ेगी
पर इस वक्त कहता है हर दिल
न है कोई उपचार इस मंजर का
बस एक ही दवा है इस बेदर्द हालात का
घर पे ही रहना है और कोरोना से लड़ना है
चाहे कही से भी ये कोरोना आया है
पर लौटकर इसे हिंदुस्तान की चौखट से ही जाना है
कर ली हमने भी तैयारी पूरी है
इस कोरोना को दूर भगाना है ।
~ मोनू मल्लिक