अप्रैल फूल नहीं मनाना भाई

अप्रैल फूल नहीं मनाना भाई

सदियों से मनाते आए
हो, सभी अप्रैल फूल
इस बार नहीं मानना भाई,
कारण कोरोना शूल

इस बार तिलांजलि
दे दो, मूर्ख दिवस की
दुआ में बैठो, करो प्रार्थना,
यही है बस की

हाल को जानो, चाल को जानो,
नही बुलाओ बबूल

अपनों से दूर हुए, जिसके कारण,
हम फ़लक पर
कभी आसमां सा बैठे थे,
अपनों के हम पलक पर

किस बात की अब खुशियां भाई,
करो ना कोई भूल

जब है हम पिंजरे में
तन्हा तन्हा सा, कैद हुए
अधिक काल व्यतीत हो गए
अपनों को छुए हुए

जी करता है चन्दन लगाऊं
कैसे लगाऊं धूल?

प्रकृति भी छूटी, खेल भी छूटा,
वबा की कहर में
सारी जिंनगी बेढब हो गई
और घुल गई ज़हर में

ताक पर रख डाले जो है,
जीने के सारे उसूल

भूख प्यास से तड़प रहे है,
सारे अपने बचपन
डर जा रहे है थककर अपने,
देख के दागी दर्पण

आओ डंटकर पता करें हम,
कोरोना का मूल

~ इमरान सम्भलशाही

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