मुझे भी अपने देश पर अभिमान है। कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त जी यह कविता आपके हृदय एक सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित कर देगी।
मुझे अपने देश पर अभिमान है
मै भारतीय हूँ इसका मुझे गर्व है
भारत मेरी माता है इसका गर्व है।
इसकी गोद मे पला हूँ, इसका अभिमान है मुझे।
इसके अमृत समान जल का पान किया,
इसकी वादियों में साँसे ली, इसका अभिमान है मुझे।
इसके कोख से उपजे अन्नपूर्णा को ग्रहण कर ऊर्जा,
बुद्धि, ताकत, सौन्दर्य प्राप्त किया, इसका अभिमान है मुझे।
जिस भारत माता के चरण अर्हनिश सागर पखारता है
मुझे ऐसे भारत पर गर्व है।
जिसका मुकुट सिरमौर हिमालय है,
जिसने बहुत से सदानीरा को अपना गलमाल बनाये हैं,
यह मेरे लिए अभिमान गर्व की बात है।
जिसकी परम्परा के गायन वेदों में है,
उस परम्परा के हम संवाहक है, मुझे इस पर अभिमान है।
जिसकी नदियाँ सदैव कलकल निनादिनी है,
ऐसे सदानीरा के पावन तट का वासी होने का गर्व है मुझे।
जहाँ आर्यभट, बाराहमिहिर जैसे उद्भट्ट विद्वान हुए भारत पर गर्व है मुझे।
जहाँ कालिदास, भारवि, भास, बाल्मीकि, व्यास, बाणभट्ट, शंकराचार्य
जैसे मनीषी हुए ऐसे भारत पर अभिमान है मुझे।
जहाँ मीरा, नानक, रैदास, तुलसी, जायसी, सूर, रसखान, कबीर, रहीम
जैसे लोग हुए ऐसे भारत पर अभिमान है मुझे।– डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘किशन’