कलमकार सुधांशु रघुवंशी ने कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की हैं जो जिंदगी के किसी छोर की सच्चाई बता रही हैं आइए उनके मुक्तक व विचारों को पढ़ें।
वियोग की पीड़ा से परिचित
नहीं फेंकते
बहती नदी में कंकड़
उन्हें भय होता है
कहीं ठहर न जाए नदी,
सागर प्रतीक्षा कर रहा होगा ।१।
वह शब्द
जिसका उच्चारण ठीक
नहीं कर पाती थी तुम
वही अशुद्ध उच्चारण है
मेरी कविता ।२।
तुम्हारी हँसी बेआवाज़ थी
और रोने में शोर
जब तुम प्रेम में थे!
अब, जब प्रेम तुममें है
तुम्हारी हँसी में शोर है
रोना.. बेआवाज़ ।३।
~ सुधांशु रघुवंशी