मानव कंपित, दुखी बहुत
आज हुआ वो खस्ताहाल,
मंदिर मस्जिद बंद हो गए
काम आ रहे हैं अस्पताल।
हां मैं भी एक उपासक हूं
मानता हूं प्रभु का कमाल,
डॉक्टर उसकी श्रेष्ठ रचना,
काम कर रहे हैं बेमिसाल।
मंदिर का ईश्वर संबल देता
डॉक्टर पहना रहे जयमाल,
स्वस्थ होकर घर आते बच्चे
मांए चूम रही है उनके गाल।
मर्ज़ी तुम्हारी मानो ना मानो
बिन चिकित्सक सब बेहाल,
हर विपदा के सम्मुख खड़े हैं
और मानव को रखा संभाल।
~ देवकरण गंडास “अरविन्द”