सिसक रहे हैं सपनें सबके
आज के हालात से
बेबस जीवन हुआ आज है
कोरोना की मार से..।।
आज और कल की चिंता में
व्यथित हुआ मानव जीवन
हुए पलायन को बेबस सब
बेकारी की मार से..।।
पेट और रोटी का रिश्ता
अब कैसे निभ पाएगा
भरण और पोषण कैसे हो
बीमारी की मार से..।।
मुरझाए चेहरे से अब तो
खुशियां सारी दूर हुईं
जीवनयापन मुश्किल में है
महामारी की मार से..।।
महामारी की मार से..।।
~ विजय कनौजिया