तू जो मिल के भी, न मिला मुझे,
इस सब्र का, क्या हिसाब दूं?
तेरी हिचकियों का सवाल मैं,
मेरी सिसकियों का जवाब तूं ।
तू जो कह सका, ना समझ सका,
उस जख्म का, क्या गिला करूं।
तू जो मिल के भी, न मिला मुझे …
तेरी बज्म का हूं मलाल मैं
मेरी नज़्म का है खयाल तू।
क्यों है दरबदर यूं भटक रहा,
तेरे दर्द की, क्या दवा करूं?
तू जो मिल के भी, न मिला मुझे …
तेरी बन्दगी की किताब मैं,
मेरी जिन्दगी का खिताब तू
तुझे जीत के भी न पा सकी,
इस मुफलिसी को, क्या नाम दूं?
तू जो मिल के भी, न मिला मुझे …
इस सब्र का, क्या हिसाब दूं?
~ तृप्ति रक्षा