कलमकार विकास सिंगौर की एक रचना पढें जिसमें वे लिखते हैं कि जीत का जश्न ऐसा हो किसी दूसरे को यह न लगे कि उसकी हार हुई है। खुशियों में सबको शामिल कर उसे और बड़ी कर लेना चाहिए।
जश्न मनाओ उस जीत का,
जिसमे किसी की हार न हो।।मिल ही जाती है मंजिल,
सब कुछ खोने के बाद,
सुबह भी मिलती है उपहार में,
सारी रात सोने के बाद,
इतना ही काफी नही इस जहाँ में,
जब तक अपनों का प्यार न हो,
जश्न मनाओ उस जीत का,
जिसमे किसी की हार न हो।।रोते हो क्यों, उस अजनबी के लिए,
रोना ही है तो रोओं, उन सभी के लिए,
दिल में जिन सब के
तेरे लिए तकरार न हो,
जश्न मनाओ उस जीत का,
जिसमे किसी की हार न हो।।मासूमियत दिख जाती है, हर एक सूरत में,
फिर फर्क क्या हुआ उनमे, और मूरत में,
बना के रखना दूरी हर उस रिश्ते से,
जिसका कोई सार न हो,
जश्न मनाओ उस जीत का,
जिसमे किसी की हार न हो।।सबको बस खुदा,
एक तुझ पर विश्वाश है,
कदम-कदम पर यहाँ,
बस तेरा ही साथ है,
साथ देना यूँ ही भगवन हमारा,
जब तक नैया सबकी पार न हो,
जश्न मनाओ उस जीत का,
जिसमे किसी की हार न हो।।~ विकास सिंगौर