लॉकडाउन हुआ देखो देश में,
सब को हुआ है अवकाश।
गृहिणी को छुट्टी आज भी नहीं,
वो कितनी होगी बदहवास।।
वो खुश तो दिख रही है बहुत,
सभी अपने जो है उसके पास।
मन में कौन झाँके उसके,
कौन बनाए जीवन को खास।।
खा–पी कर सब बैठ जाते,
पकड़ कर हाथों में अपने फोन।
वो कुछ कहना भी चाहे मन की,
किसे फुरसत यहाँ उसकी सुनता कौन।।
गर वो भी उठा ले फोन घड़ी भर,
टिक जाती है नजरें सबकी उस पर।
काम फिर दिखते नहीं किसी को उसके,
बैठ जाते हैं सारे सुनाने को सिर पर।।
गृहिणी तो गृहिणी ही है न,
उसको तो बस करना है घर का काम।
कोई समझना ही नहीं चाहता उसको,
कि है उसके भी कुछ अरमान।।
~ कला भारद्वाज
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