वो सुहाना सफर, किसे थी ये खबर, ये भी दिन आएगें.
हम चले थे कहाँ, आ गये हैं कहाँ, ये भी दिन आयेगे.
भागमभाग जीवन, मन में था कुछ लगन, ठहर जायेगे.
अब दिल डरता है, मन मचलता है, जीवन गया है ठहर.
राह सूझे ना, मन तो बूझे ना, क्या करू अब किधर.
कभी टीवी देखूँ, कभी मुखपोथी पढ़े, अब जाऊ किधर.
अब ईश्वर का संग, मन में जागे उमंग, वही कर दे रहम.
आयी विपदा है जो, जायेगी भी तो वो अब काहे का गम.
हम तो लड़गे उससे, और जीतेंगे उससे, है काहे का भरम.
हमनें संयम धरा, मन में भक्ति भरा, ये दिन जाऐंगे गुजर.
अब तो शहर शहर है कोरोना का कहर, बचना मुश्किल हुआ.
~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त “किशन”