प्रेम

प्रेम

प्रेम बहुत सरल है किंतु इसे समझ पाना मुश्किल है। प्रेम क्या है? इसके कई रूप रंगों का उल्लेख कलमकार रजनी ने अपनी इस कविता में किया है।

अगर प्रेम होता केवल
आलिंगन, स्पर्श
या चुंबन
तो प्रेम के लिए
कविताएं न होती।

अगर प्रेम होता केवल
दो ग्रहों के घूर्णन से
उत्पन्न आकर्षण
तो भी प्रेम में कविताएं
जन्म न लेती।

प्रेम कविताएं उपमा होती है
उस प्रतीति की
जो निरंतर नंगे पांव
सीढ़ियां चढ़ रहा है
उस बिम्ब के दर्शन के लिए
जो मंदिर में होता है

प्रेम की शैली प्रेम रहित होती है
प्रेम मैदानों में विचरती
बयार है
जो कभी पहाड़ों की तरफ
चल पड़ती है
कभी समुद्र की तरफ।

~ रजनी मलिक

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