कलमकार सुजीत कुमार कुशवाहा माँ की याद अपनी कविता में लिखते हैं। माँ का साथ यदि छूट जाता है तो हम ममता की छत्रछाया से वंचित रह जाते हैं।
आती, पर मिल सकता नहीं।
लौट आओ ना माँ, याद जाता नहीं।
स्वर्ग में तू तो छुपी ही नहीं।
गांव आऊं तो तू मिलती ही नहीं।गयी आखिर कहाँ, मुझे क्यों तू दिखती ही नहीं।
वो गलियां, वो सुबह की चाय, मै भूल पाता नहीं।
सपने में तू आती तो आँख खुलती ही नहीं।
आँख जब खुलती तो तू दिखती ही नहीं।शाकाहारी होते हुए भी मांसाहारी बनाती रही।
अपनी उन प्यारी हांथो से रोटियां खिलाती ही रही।
जब तक सो नहीं जाता लोरिया सुनाती ही रही।
स्कूल जाने से पहले माड़ तक भी पिलाती ही रही।~ सुजीत कुमार कुशवाहा