Post category:COVID19 / कविताएं Post published:April 9, 2020 कोरोना का आपातकाल घंटियां ख़तरे की बज रहीं। योजनाएं हैंगरों में हैं टंगी। आपदाएं भूख की हैं जगी। मातम की अर्थियां सज रही। चल दिए ओढ़ चादर बेबसी की। गालियां दो और रोटी जग हंसी की। कुर्सियां हमको तज रही हैं। ~ अनिल अयान Tags: SWARACHIT607E, कोरोना वायरस, तालाबंदी Read more articles Previous Postकैसा ये वक़्तNext Postगाँव की याद You Might Also Like कौन April 5, 2020 जाती है अब जान May 6, 2020 दीप जलाएं April 7, 2020 राहुल सांकृत्यायन से महापंडित April 9, 2020 गृहिणी तो गृहिणी है April 11, 2020 व्यवहार February 17, 2020