हमारे घर नही होते

हमारे घर नही होते

उनकी मेहनत के बिना ये उन्नत शहर नहीं होते,
वो नहीं बनाते पसीने से तो हमारे घर नहीं होते।

वो आज सड़कों पर दर- दर भटक रहे हैं यहाँ
बहुत दुःखद है मगर सच है उनके घर नहीं होते।

भौतिकता की चाह में हम न खेलते नटी से तो
ये कोरोना या अन्य विपदाओं के डर नहीं होते।

जरा भी मांस का होता जो दिल शहर वालों का
तो सड़कों पर भटकते लाखों ये बेघर नहीं होते।

बन स्वामी हमने प्रकृति को सताया है बहुत प्यारे
पुत्र बनते हम अगर तो ये कर्फ्यू कहर नहीं होते।

मैं बस इतना कहूँगा सहायता करने में न रुकना
अगर हो सामने बेबस या जिनके दर नहीं होते।।

~ ऋषभ तोमर