वाह रे, कोरोना

वाह रे, कोरोना

वाह रे, कोरोना। तूने तो गजब कर डाला,
छोटी सोच और अहंकार को,
तूने चूर-चूर कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

पैसो से खरीदने चले थे दुनिया,
ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में,
तूने तो पैसो को भी, धूल-धूल कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन,
लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी,
तूने एक झटके में सारा जहां, सुनसान कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

दिहाड़ी करने वाले मजदूर,
खेत पर काम करते गरीब किसान,
तूने तो इनको बिल्कुल, कंगाल कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में,
गरीबों को अपने घर आने के खातिर,
कोसों पैदल चलने को, मजबूर कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस,
देखो । सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर ,
हम सब लोगों का, विचार बदल डाला।।
वाह रे, कोरोना।

डॉक्टर को कहते थे तुम लुटेरे,
आज फिर इस वैश्विक महामारी में,
धरती का भगवान है डॉक्टर, ये साबित कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

सफाई कर्मियों को नीचता से देखते हो,
देखो । आज कैसे सेनिटराईज कर रहे भारत को,
इन्ही लोगों ने भारत का , हाल बदल डाला।।
वाह रे, कोरोना।

शिक्षक तो होते ही है सबसे न्यारे,
आज दिन रात लगे है हम सबको बचाने,
हमारे दिल में और सम्मान बढ़ा डाला।।
वाह रे, कोरोना।

कोरोना से दिन रात लड़ रही सरकार,
राजनीति को ताक में रख लॉकडाउन से,
इस कोरोना महामारी पर शिकंजा कस डाला ।
वाह रे, कोरोना।

सिर्फ जनता हित के लिए ही तो खड़े है तत्पर,
पुलिस, डॉक्टर, सफाईकर्मी, शिक्षक और प्रशासन,
इन पांचों ने तो अपना सब सर्वस्व दे डाला।।
वाह रे, कोरोना।

कोरोना हारेगा हमारी एकता से ” जसवंत”,
फिर देखना दुनिया देखेगी, कैसे भारत देश ने,
कोरोना महामारी का सत्यानाश कर डाला।।
वाह रे, कोरोना।

~ कवि जसवंत लाल खटीक

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