अर्धरात्रि के समय

अर्धरात्रि के समय

भौंकते श्वानों की हृदय विदारक आवाज़ सुनकर
व बेबस जानवरो सहित भूख से ठोंकरे खाते
बहुत सारे बेसहारों को देखकर
मन सुन्न सा पड़ गया है

अभी तक अनजान था
मै इस बात से
कि इनका पेट कैसे भरता होगा?
आज जब, कोरोना वायरस के कारण
सारा शहर लॉक डाउन में गुज़र रहा है
जिसके कारण
प्रत्येक इंसान भी अपने अपने घरों मै क़ैद है

सारे होटल, ढाबा व दुकानें बन्द पड़े है
न चाट का ठेला है कहीं, न बाटी चोखे का
ना कहीं विवाह समारोह और
ना ही कहीं कोई उत्सव या महोत्सव हो रहा है
सभी,चारों तरफ वीरान पड़े है
जानवरों सहित बेसहारों के भोजन का
एक सहारा जो हुआ करता था
कहीं भी कुछ भी पा जाते थे और खा लेते थे
कम ज़्यादा ही सही, इनका पेट तो कुछ भरा रहता था
लेकिन आज एक निवाले के लिए भी तरस रहे है

सच तो यह है कि ये सभी जानदार
हम इंसानों की तरह एक सामाजिक प्राणी ही है
जो हमारे साथ उठते बैठते घूमते व सोते है
सुख दुख के साथी होते है
आज इंसान इन्हे भूल गया है केवल अपनी विवशता में

आज स्वयं इंसान भी भूखा प्यासा तड़प रहा है
लेकिन बहुत सारे इंसान संपन्न भी तो है
आखिर सम्पन्न लोग इनके लिए कुछ क्यो नहीं कर रहे है
मन मेरा थी सोचकर
विवशता में खिन्न हो रहा है
इन जानदार रों की भूख का एहसास है मुझे

पन्नी की ज़रा सी खरखराहट मात्र से
भूखी प्यासी गाय सारी
भागती चली आ रही है द्वार पे
शायद इसी तलाश में कि कुछ खाने को मिल जाएगा
पहले कहां आती थी?
क्योंकि उनके जो पेट भरे होते थे
आज उनका आना ही ये दर्शा रहा है कि
उनके जीवन में कितना संघर्ष व्याप्त हो गया है

भूख प्यास से व्याकुल ही बिलबिला रहे है
वक्त ऐसा है कि कोई इंसान जानवर तो दूर
इंसान को छूने से डरा रहा है
फिर कैसे क्या होगा?
अफसोस इसी बात का है हे ईश्वर
आज की डवांडोल परिस्थिति से समझा जा सकता है
कि प्रत्येक जीवों की विपत्ति के समय जीवन
में जो संघर्ष करना पड़ता है

लैमार्क के जीवन संघर्ष की याद दिलाती है
जिसमे छोटे गर्दन वाले जिराफ नष्ट हो गए
बड़े गर्दन वाले जिराफ के अपेक्षा
कारण, जीवन संघर्ष के दौरान
पृथ्वी के समस्त छोटे खाद्य सामग्री ख़तम हो चुके थे जो
आज वही स्थति परिस्थिति तो हो गई है
कोरीना वायरस के कारण
जीवन का ऐसा संघर्ष कदापि नहीं देखा था
कोई नहीं
हम भी नहीं
हे ईश्वर!
सभी जीवों की रक्षा कर!

~ इमरान संभलशाही

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