उपकार करो या सत्कार करो

उपकार करो या सत्कार करो

जीवन में कर्म का विशेष महत्व होता है, हमें सदैव कर्मशील रहना चाहिए। कलमकार इमरान संभलशाही ने अपनी इस कविता में जीवन को जीने के कुछ बेहतरीन नुस्खे बताएँ हैं जिसे अपनाना हितकर होगा।

उपकार करो या सत्कार करो
स्नेह मुहब्बत हर बार करो

हो जीवन सावन जैसा
रहो न जग में ऐसा वैसा
बारिश की फुहार बन कर
रिमझिम सी हर बार मरो

लहर बनो प्यार के खातिर
न मन में हो द्वेष का शातिर
मन भेजो न इधर उधर
तूफ़ान को खबरदार करो

लहज़ा भी बस नरम रहे
कड़ुआ वाणी पिघल बहे
व्यवहारों को मिला मिला के
कुसंग से सौ बार डरो

ममता को नजदीक बुलाकर
अपनापन आगोश में लाकर
हर संध्या आंगन में जाओ
न चूल्हों से बेतार जरो

रंग बिरंगे फूल सजाओ
सतरंगी खुशियां मनाओ
काले सफेद का भेद मिटाकर
दुख पीड़ा हर बार हरो

शीतल पानी भरकर लाओ
इकबार नहीं सौ बार जाओ
सौ मटका मचल पड़े भी
उठकर हज़ार बार भरो

सौतन को भी अपना लो
कुसंस्कार को दफना लो
बादर जब जब बरसे पानी
निकल निकल हरबार तरो

सेवा मां की खूब किया कर
पगडंडी में साथ जिया कर
डॉट भी गर दे जननी तेरे
न उनसे भर घर द्वार लरो

~इमरान संभलशाही

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