कलमकार प्रिंस कचेर “साक्ष” इश़्क को कातिल संबोधित करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं।
तुम भी खामोश हो, मैं भी खामोश हूं
फासले ही बचे, दोनों के दरमियांझूठे वादे किए,झूठी कसमें देिये
क्यों बढ़ाई थी तुमने, यह नज़दीकियांमै तो गैर था, ना किसी से बैर था
तेरे शहर से पूरा मैं अंजान थाजैसे बादल के संग बूंदे आती निकल
वैसे पल भर का मैं भी मेहमान थामैं भी मासूम था, थोड़ी मजबूर था
फसता ही मैं गया, रिश्तो कि डोर मेंयकी तुमपे मै, फिर भी करता रहा
मै तो तिल-तिल,घुट-घुट के मरता रहा~ प्रिंस कचेर “साक्ष”