बच्चों के अजीबो-गरीब सवाल

बच्चों के अजीबो-गरीब सवाल

यदि कलात्मक जवाब सुनने हों तो बच्चों से कुछ प्रश्न पूछिये, उनके उत्तर सुनकर आप अचंभित रह जाएंगे। ये उत्तर उन्होने कल्पना के सागर से काफी सोचकर दिया होता है। कभी-कभी बहुत ही जटिल सवालों का आसान सा उत्तर देकर हमें दंग कर देते हैं। इसी कड़ी से जुड़े हैं उनके प्रश्न भी, बच्चों के पास प्रश्नों की भरमार होती है जिनसे सभी का पाला पड़ता है।

यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे बुद्धिमान हों, तो उन्हें परियों की कहानियां सुनाएँ। यदि आप चाहते हैं कि वे अधिक बुद्धिमान हों, तो उन्हें और अधिक परियों की कहानियां सुनाएँ।”
~ अल्बर्ट आइंस्टीन

जब हम किसी नई दुनिया मे प्रवेश करते हैं तब वहाँ पहली बार दीख पड़नेवाली हर वस्तु और प्राणी के बारे में अधिक से अधिक जानने के लिए उत्सुक रहते हैं, ठीक उसी तरह ये बच्चे भी एक नई दुनिया में आए हैं और इसे जानने समझने का प्रयास कर रहें हैं। हम बड़े हो चुके हैं और अपने अनुभव से इस दुनिया के बारे में बहुत कुछ जन चुके हैं, अतः बच्चों द्वारा पुछे गए प्रश्नों का अपने अनुभव के अनुसार सटीक उत्तर देने का हमें सदैव प्रयत्न करना चाहिए। कभी-कभी इतने गूढ़ प्रश्न पूछ लिए जाते हैं की उत्तर देने के लिए शब्द जुटा पाना असंभव होता है। ऐसे मौकों पर परिस्थिति के अनुसार उनकी शंका का समाधान करने में अपने अनुभवों का इस्तेमाल करना उचित होता है। उनके मन में उठ रहे सवालों की जब तक संतोषजनक जवाब नहीं मिल जाता तब तक नए नए प्रश्नों की एक लंबी शृंखला जारी रहती है। एक के बाद एक नए सवाल, ऐसी दशा में यही लगता है कि कहाँ फस गए? वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जो बच्चे ज्यादा सवाल पूछते हैं, उनका आईक्यू लेवल (IQ) सामान्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा तेज होता है।

बचपन जीवन का शुरुआती और सबसे सुंदर पड़ाव है, इसमें बच्चों का भरपूर साथ दें और उनके जीवन को सकारात्मकता से भर दीजिए। जहां तक संभव हो हम सभी को उचित जवाब देकर उनके प्रश्नों को विश्राम दिलाने में मदद करानी चाहिए। बच्चे बढ़ रहें हैं और बहुत कुछ जानना-समझना चाहते हैं, उनका मन दुनिया के कई रहस्यों से पर्दा उठाना चाहता है। अभी तो ये सिर्फ मूलभूत जानकारियाँ हासिल करना चाहते हैं जो आगे चलकर इनकी सफलता का आधारस्तंभ बनेगी। उन्हे गलत जानकारियाँ देने या बरगलाने की कोशिश कदापि नहीं करनी चाहिए क्योंकि इन्हीं जानकारियों के बल पर वे भविष्य में इस संसार में प्रगतिशील बननेवाले हैं। बच्चों से बातचीत कर हम उनके करीब आते हैं और सवाल-जवाब के सिलसिले को निभाकर अपना रिश्ता मजबूत करतें हैं।

यदि आप किसी चीज़ को ६ वर्ष के बच्चे को नहीं समझा सकते तो वह चीज़ आप ख़ुद भी नहीं समझे हो।”
~ अल्बर्ट आइंस्टीन

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