हो न हो

हो न हो

कलमकार सतीश शर्मा जीवन में घटने वाली अनेक परिस्थितियों और घटनाओं के अनुभव से यह कविता पूरी की है।

कई आदमी रहते हैं यहां, हर एक शख़्स में।
हो सकता है, बेहतर भी हो कोई बुरा भी हो।

पाना है मंज़िल को किस्मत में ठोकरें भी हो।
सभी से फांसला भी हो और हौंसला भी हो।

यूं देखिए जिस जानिब तो मिलेंगे बर्बाद कई।
सो तमाशा ए दुनिया देखने को,तमाशा भी हो।

हो मुहब्बत या हो अकीदत,न हो नफ़रत कभी।
फ़िक्र ए वादा भी हो और ज़िक्र ए वफा भी हो।

~ सतीश शर्मा

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