मत पगला ऐ इंसान,
खाक में मिल जाएगा तेरा स्वाभिमान,
ये जवानी… ये ताक़त.. ये दौलत..
सब कुदरत की इनायत है।
तू मर के संसार से चला जायेगा,
इस धरा का
इस धरा पर
सब धरा रह जायेगा
मैंने हर रोज.. जमाने को बदलते देखा है,
उम्र के साथ.. जिंदगी को ढंग बदलते देखा है,
कलतक जो शेर.. अपने पंजे पे इठलाता था,
उसे भी आज.. किसी का सहारा लेते देखा है,
अपने आज पे.. इतना मत इतराना.. ऐ इंसान
हमने वक़्तों की धार को.. नज़रो से बदलते देखा है,
बन सको तो.. कर्मयोगी बनो
अधर्मी बनते बोहोतो को देखा है,
बरसा सको तो.. किसी पे प्रेम बरसाओ.
दुख बरसाते कितनो को देखा है.
बनना है तो परोपकारी बनो,
नरभक्षी बनते कितनो को देखा है,
करना है तो कुछ अच्छा करो,
वरना मर के संसार से चले जाएगा
और इस धरा का
इस धरा पर
सब धरा रह जायेगा।
~ दीपक कुमार दिवाकर