विश्व धरा ने युगों-युगों से,
अनंत पीड़ा सही।
जीवन दिया,
पोषण किया।
पालक होकर भी,
पतित रही।
अपनी ही संतानों का,
संताप हर,
अनंत संताप सहती रही।
विश्व धरा ने युगों-युगों से,
अनंत पीड़ा सही।
स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर,
भूख मिटाई दुनिया की,
पर अपनी संतानों की लालसा से,
उनके लालच से बच ना सकी।
विश्व धरा ने युगों-युगों से,
अनंत पीड़ा सही।
अपनी सारी सुंदरता देती रही।
और अपनी ही संतानों से,
करूपित होती रही।
गंदगी के ढेरों को सहती रही।
अमूल्य धरोहरों को देकर,
प्रदूषण से सांसे घुटवाती रही।
विश्व धरा ने युगों-युगों से,
अनंत पीड़ा सही।
इंसानो की गलतियों से,
जब रुौद्र रूप लेती।
सबकी गलतियों की सजा,
खुद ही सह लेती।
आज विश्व धरा दिवस पर,
संकल्प ले
धरा के सरंक्षण की,
कोरोना की आपदा
जो कुछ
लालची इंसानों ने थी बनाई।
किस तरह धरा पर आज विरानगी है छाई।
मौत से कैसे धरा, आज है कंप-कंपाई।
~ प्रीति शर्मा “असीम”