पूरा विश्व कोरोना वायरस के कारण कठिन समय से गुजर रहा है। क्षेत्रों, राज्यों की सीमाएं बंद, स्कूल-कॉलेज बंद, यात्रा बंद और हम सभी अपने अपने घरों में बंद। भोजन, पानी अन्य साधनो की कमी, कोरोना ग्रसित लोगों की बढ़ती संख्या, सम्बंधित खबरें, ये सभी घर के अंदर बैठे व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक प्रताड़ित कर रहे है।
ये महामारी, आपदा, भूकंप, बाढ़ आदि हमारे वश में नहीं लेकिन अपनी आतंरिक दुनिया को निश्चित ही वश में कर सकते हैं। हमारी सोच, व्यव्हार, दृष्टि, विचार, भाव सभी को हम दिशा दे सकते हैं।
इच्छाशक्ति, सकारात्मकता निश्चित ही बहुत बलशाली हैं। यह सम्पूर्ण शारीरिक तथा मानसिक तंत्र को मजबूत बनाती हैं, नकारात्मक विचारों से, रोग, महामारी से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। यह भयंकर महामारी हमें जीवन के सबक दे रही है जो आपसे साझा कर रही हूँ:
प्रशंसा करें
प्रशंसनीय हैं सभी स्वास्थ्यकर्मी डॉक्टर, नर्स जो दिन रात अपने परिवार से दूर मरीजों की देख रेख कर रहे हैं, प्रशंसनीय हैं सुरक्षाकर्मी पुलिस व्यवस्था जो पूरी चौकसी से लॉक डाउन व्यवस्था बनाये हुए है। सब्जी वाले से, राशन वाले घर घर आवश्यक समानं की आपूर्ति कर रहे हैं। प्रशंसनीय है परिवार जो कम साधनों में भी एक दुसरे के साथ हैं।
अनेकता में एकता
महामारी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जाति, अमीर-गरीब देख कर नहीं आती किन्तु सभी धर्म, वर्ग, जाति के लोग एक जुट होकर इसका सामना कर रहे हैं। कोरोना योद्धाओं के लिए अपने अपने घरों में दिये, मोमबत्ती जला रहे हैं। दिए की लौ में एक प्रकाशमय सन्देश प्रेषित कर रहे हैं।
निर्भरता- एक भ्रम
निर्भरता जीवन का सबसे बड़ा भ्रम है जो हमे हमारी क्षमताओं से दूर करता है। बाजार की चकाचौंध, फ़ास्ट फ़ूड, बनावटी जीवन शैली पर इतना आश्रित हो गए हैं जैसे इन सबके बिना जीवन संभव नहीं। लॉक डाउन में अपने अपने घरों में, अपने परिवार के साथ कम साधनों में एक साथ खुशहाल जीवन ने यह भ्रम तोड़ दिया।
चुनौतियों से सीख
जीवन की चुनौतियाँ मनुष्य को मजबूत और सकारात्मक बनाती हैं। कभी कभी अपनी क्षमताओं, शक्तियों का ज्ञान भी चुनौती आने पर ही पता चलता है। लॉक डाउन की स्थिति में शिक्षा सबसे बड़ी चुनौती थी जो इस भयंकर महामारी से स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय बंद होने से बाधित हो गयी थी। शिक्षक, माता पिता, प्रशासन सभी चिंतित हो गए परन्तु पूरे भारत में ऑनलाइन कक्षाओं ने समस्या का निदान कर दिया। अपने हांथों को धोने के साथ साथ अपने मन मस्तिष्क को भी धोने की आवश्यकता है जिससे नकारात्मकता जीवन से धुल जाए। हम सभी एक नयी ऊर्जा के साथ मिलकर आगे बढ़े। भयमुक्त होकर सदभाव तथा प्रेम भाव से जीवन में आगे बढे।
~ लेखिका: काजल सिंह
पुस्तकालयाध्यक्ष, केंद्रीय विद्यालय बस्ती, उ प्र