मेरी किताबें

मेरी किताबें

किताबों पर
मैं जाऊं वारी-वारी
इसकी पंक्ति-पंक्ति जैसे हो
कोई मेरी सवारी
जिस पर बैठ मने
घूमी दुनिया सारी
किताबों ने मेरी जिंदगी संवारी
इसके शब्दों की
लीला है, न्यारी।

इसमें होकर सवार
कभी मैं घूमी दुनिया पुरानी
तो मने बुद्धा की लुम्बनी जानी
चाणक्य की नीति पहचानी
एकलव्य की सुनी कहानी
किताबों में हैं
पूर्वजों की निशानी।

तो घूमी कभी
अंतरिक्ष की दुनिया निराली
धरती और आकाश की दूरी जानी
और जानी गहराई समंदर की
किताबें सच्चाई हैं जीवन की
ये प्रमाण हैं मनुष्य के आस्तित्व की
इनसे ही जाना मने संविधान को
अपने हक़ को पहचाना है।

किताबों की मैं हूँ दीवानी
इनसे ही है, मेरी जिंदगानी
कुर्सी पर बैठे-बैठे मुझे
ये दुनिया की सैर कराती हैं
हर एक पन्ने के बाद
ये मेरी दुनिया बदल जाती हैं।

किताबेंं हमसे
कुछ नहीं छुपाती हैं
ये हमें अपने अंदर ही
यूँ समेट लेती हैं
किताबें जीवन की राहें
दिखाती हैं
जिस सवाल का कहीं जवाब नहीं
वो जवाब किताबें देती हैं।

~ सचना शाह

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