आज विश्व पुस्तक दिवस है, इसकी महत्ता सनातन युगों से चली आ रही है.
आज भी प्रासंगिक है और अनंत युगों तक प्रासंगिक रहेगी.
पुस्तके ज्ञान पुंज है, ये जहाँ रहेगी, स्वत: ही स्वर्ग वह स्थान बन जाएगा.
पुस्तकों में युगों युगों की ज्ञान राशि संचित पड़ी है, तभी तो वेदों में कहा है.
आ नो भद्रा: ऋतवो यन्तु विश्वत: अर्थात विश्व के प्रत्येक कोने से शुभ विचार हमें प्राप्त हो.
इन्ही पुस्तकों से हम आदिकवि बाल्मीकि, भास, पाणिनि, बाणभट्ट आदि के विषय एवं रचनाओं को जानते हैं.
इन्ही से हम सुकरात, अरस्तू, प्लेटो आदि को जानते हैं.
इन्ही से हम शेक्सपीयर, मिल्टन, कीट्स, मैथ्यू रोनाल्ड आदि को हम जानते हैं.
इन्ही से हम सूर, तुलसी, रहीम, रसखान, मीरा, जायसी, कबीर, नानक, केशव, बिहारी, मतिराम, घनानन्द को जानते हैं.
किताबों का सदैव आदर होना चाहिए, अनादर की स्थिति में देश, समाज, सभ्यता, संस्कृति सब कुछ विनष्ट हो जाएगा.
~ डॉ कन्हैया लाल गुप्त “किशन”