जी लूँगा

जी लूँगा

कलमकार अभिषेक की एक रचना पढें जो लिखते हैं कि चाहे जैसी परिस्थिति आ जाए, मैं उनका सामना कर जी लूँगा। तुम साथ न भी दो तो भी जी लूँगा।

आज लग रहा जैसे तुम नहीं हो,
हाँ सही सुना।
अपनी यादों में ढूंढ रहा हूँ…
मिल नहीं रही हो।
जिसे हर पल याद करता था,
आज बार-बार सोचने पर भी..
तुम जहन में नहीं हो।
आज महसूस हो रहा जैसे,
तेरी यादें दूर कहीं दफन हो।
जानते हो क्या बचा है तुम्हारे लिए अभि के दिल में…
वो प्रेम जिसे तुमने ठुकरा दिया था कभी,
वो असीम शक्तियों से लबरेज़
मेरे मन में फूल बन महक रहा है!
उसी त्याग और समर्पण के साथ..
जिस तरह तुझसे पहली दफा मिलने के वक़्त हुआ था!
समझ रही हो ना,
मेरा प्यार तेरे लिए ताउम्र रहेगा !
अपनी हर छोटी-मोटी, खट्टी-मिठी यादों के साथ!
कभी मिल भी लिया करूँगा सपनों में आ के…
मगर सामने से कभी नहीं।
हाँ सही में कभी नहीं।
पता है ना?
एकतरफा प्यार की ताकतें।
जी लूंगा।

~ अभिषेक ‘अभि’

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