सपनो का संसार

सपनो का संसार

खुले गॉव को छोड कर
आया था शहर, करने व्यापार
तंग गलियो मे सिमट गया, सपनो का संसार

काम-धन्धा सब चौपट हुआ
छुट गया घर बार
जब से फैला है महामारी का प्रसार

रातो मे अब नीद ना आती
गॉव कि चिन्ता मूझे सताती
कैसे होगें मॉ बाप

अब आस लगा रखी है सरकार से
मदद मिल जाये जो एक बार
मै भी पहुच जाऊगां अपने घर द्वार

– धीरज गुप्ता

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