विद्या की देवी माता सरस्वती की यह स्तुति कलमकार आनंद सिंह की रचना है, आप भी पढें और अपने विचार व्यक्त करें।
हे वागेश्वरी हे वाग्देवी
हे विणापाणी ज्ञानदा
हे हंसवाहिनी हे महाश्वेता
हे मात सरस्वती शारदाआदिशक्ति का रूप मात तुम
श्री विष्णु का आवाह्न तुम
ब्रह्मा जी जब विचलित हुए तो
मां उनका एकमात्र निवारण तुमतुम बिन ना पूर्ण हो पाता
ब्रह्मा जी की श्रृष्टि रचना भी
मूक बना था मनुष्य और
धरती पर प्राणियों में नीरसता थीतुम मेधादायनी तुम चतुर्भुज सुंदरी
सबके शब्दों की संचारक तुम
तुम ही हो माता श्रोत संगीत का
सारे ध्वनियों की शासक तुमथा सन्नाटा पसरा चहो दिशा
धरती पर मानो निर्जन था
फिर शब्द, वाणी, ध्वनि प्रदायक
वो तेरे वीणा का कम्पन थातुम ज्ञान कोष तुम परम चेतना
अज्ञान तिमिर की भक्षक तुम
तुम ही तो भगवती का कांति रूप