वक़्त की बात

वक़्त की बात

वक्त हमेशा एक जैसा नहीं होता है, कभी सही तो कभी गलत। कलमकार शुभम पांडेय ‘गगन’ ने वक्त के साथ अपने अनुभव को इस कविता में साझा किया है।

हर बार जो लिखता था आज थोड़ा अलग लिखता हूँ
तुम्हें बेवफ़ा कहा करता था आज खुद को कहता हूं
चलो मान लेते है इश्क़ में धोखा है आज चलो फिर इश्क़ करते है
हम तूफानों से लड़ना जानते है हम इन आंधियो से नही डरते है।
हाँ एक वक़्त की बात है जब तुम मेरे दिल मे हुआ करती थी
मेरे हर ख़्वाब हर दुआ हर तमन्ना में हुआ करती थी
आज मैं वही हूँ वही तुम हो वही दिल है वही सांसे
आज मेरे दूर जाने पे रोती हो पहले दूर जाने के लिए रोया करती थी।
तुम हर रोज़ रूठ जाती थी और तुम्हें मनाया करता था
अपने ग़ुस्से को भी मुस्कुराहट से दिखाया करता था
आज कौन देख रहा है तुम्हारे उन नखरों को
जिन्हें तुम मोहब्बत कहती थी और मैं मान जाया करता था।

~ शुभम पांडेय गगन

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