सस्ती शराब

सस्ती शराब

शराब ने न जाने कितने घर बर्बाद किए हैं, इससे दूरी रखने में ही भलाई है। कलमकार विकास बागी इस कविता में एक महिला की दास्तान बता रहे हैं।

मेरा पति शराब पीता था कोई गम न था,
वो रोज घर आता था ये भी कुछ कम न था।

अब वो किसी चौराहे पे सस्ते जहर में लूट गया,
बरसों हो गए अब तो मेरा भी हाल किसी अभागन से कम न था,
मेरा पति शराब पीता था कोई गम न था,
वो रोज घर आता था ये भी कुछ कम न था।

कोई रोज उसे फुसला कर पानी में जहर दे जाता था,
वो रोज गिरता था और रोज घबराता था,
मैं सोचती थी ये अचानक कौन लत घेर गई उसे,
जो गाली गलौच पे उतर आए ऐसा तो मेरा हमदम न था,
मेरा पति शराब पीता था कोई गम न था,
वो रोज घर आता था ये भी कुछ कम न था।

और अचानक एक दिन वो रास्ते पर गिर गया,
मेरा भी उस दिन के बाद नसीब सा फिर गया,
आज मैं विधवा हूँ, आज मैं विधवा हूँ,
पर ये देखने को मेरा वो सनम न था,
मेरा पति शराब पीता था कोई गम न था,
वो रोज घर आता था ये भी कुछ कम न था।

~ विकास बागी

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