संज्ञा में मै भूसा कपूर हूं! हां! मै मजदूर हूं
मै भूखा सूखा रहता हूं
पैदल ही चलता हूं
आंधियों को सहता हूं
पसीने में भीगता हूं
फसलों को सींचता हूं
दुबिधाएं ही लीपता हूं
पास ही हूं, कहां दूर हूं? हां! मै मजदूर हूं
पेट तो कभी भारत नहीं मेरा
भूख कभी मरता नहीं मेरा
फ़िक्र भी कोई करता नहीं मेरा
गर्मी सर्दी बरसात झेलता हूं
व्यवस्था के चंगुलों में खेलता हूं
केंचुआ की तरह रेंगता हूं
किसने कहा मै कोहिनूर हूं? हां! मै मजदूर हूं
खेत भी एक टुकड़ा नहीं
सुन्दर बिल्कुल मुखड़ा नहीं
जेब में फूटी रोकड़ा नहीं
जानवरों की तरह धकेला जाता हूं
झंझावातों में अकेला जाता हूं
गंदे नालों में ठेला जाता हूं
सुख मुझसे सुदूर है! हां! मै मजदूर हूं
रहने को कोई छत नहीं है
पास अपनों का खोई खत नहीं है
जिंदगी में कोई राहत नहीं है
खुले अंबर में सोता हूं
और रात दिन रोता हूं
बेबसियों को पिरोता हूं
बगल में पड़ा घूर हूं! हां! मै मजदूर हूं
ज़्यादा तर योजनाएं मेरे लिए ही बनती है
दोनों सांसदो में खूब ठनती है
फिर भी कहां कोई गिनती है?
आंखो से आंसू बहते है
पीड़ा भी बहुत सहते है
रोते बिलखते रोज़ चलते है
पास कोई रोजगार नहीं है
रहने को घर द्वार नहीं है
कैसे कहूं? मार नहीं है!
देखो तो बस दुखों का ज़हूर हूं! हां! मै मजदूर हूं
डगर डगर जाता हूं
रूखा सूखा खाता हूं
चवन्नी भर कमाता हूं
चौराहे चौराहे खड़ा रहता हूं
कोई भी काम मिल जाए, पड़ा रहता हूं
हे बाबू! ले चलो, अड़ा रहता हूं
कामों में सहूर हूं! हां! मै मजदूर हूं
सभी का काम भी करता हूं
मां बहिन की गाली भी सुनता हूं
खुद का पता नहीं लेकिन दूसरों का कपड़ा बुनता हूं
गाल मेरी पचकी है
कमर भी बहुत लटकी है
सांसे हर पल खटकी है
लंबा अकेला खड़ा खजूर हूं! हां! मै मजदूर हूं
~ इमरान सम्भलशाही