देखो दिवाली आयी है मन में मस्ती छाई है
दीपक की किरणों से चहुँ ओर रोशनी छाई है
अंधकार को भगाना उम्मींद का दीप जलाना है
एक दीपक की लौ से हृदय में रोशनी लाना है
पर्व मधुर मिलन का है सबको गले लगाना है
यथोचित बड़े-छोटे का स्नेह आशीष पाना है
जब तक दीपक जलता है वो अंधकार हरता है
खुद तो वो जलता पर हममे रोशनी भरता है
दीपक की हर किरण को तुम मन में भर लेना
अपने अंतर्मन को भी तुम प्रकाशमय कर लेना
जले तुम्हारे लिए जो तुम उसमे तेल भर देना
कोई हवा आये तो तुम दीपक को ढक लेना
कुछ क्षण हाथ जलेगा उसको तुम सह लेना
फिर होगा पथ रोशन तेरा मंजिल तू छू लेना
दीपक जैसे जलोगे तो सुखद अनुभूति आयेगी
मन हर्षित होगा तेरा फिर रोज दिवाली आयेगी