मजदूर बना मजबूर
हां मजदूर हूं मै।
बेबस और मजबूर हूं मै।।
काम देखकर स्वप्न दिखाकर मुझको तुमने अपना लिया।
आती देख मुसीबत मुझ पर तुमने मुझको ठुकरा दिया।।
लाचार और विवश होकर के मैंने अपना घर छोड़ा।
मुसीबत में मै तेरे जीवन का बन गया एक रोड़ा।।
हाथ पकड़ मुझे उठा ऐसे ना साथ तू छोड़ मेरा।
मैंने तेरा साथ दिया जब तू बेबस और लाचार खड़ा।।
मेरे मन की व्यथा और कुछ ना कह पायेगी।
मेरा जीवन है संघर्ष, जिंदगी मेरी यूहीं कर जाएगी।।
मजदूर दिवस क्यों मनाते हो, साहब इसे मजबूर दिवस क्यों नहीं कहते
ताकि सत्य जान सके ना कोई और भ्रम में बने रहे यूहीं।।
ये भ्रम भी आखिर टूट जाएगा ।
आखिर मजदूर कब तक मजबूर और विवश कहलाएगा।।
सोचो तनिक विचार करो उसका भी उद्धार करो।
मांगे वो किसी के आगे ना इतना लाचार करो।।
हां मजदूर हूं मै ।
बेबस और मजबूर हूं मै।
~ नीकेश यादव