Post category:कविताएं / विशेष दिन Post published:May 1, 2020 मजदूर हम मजदूर कभी छोटू, कभी रामू काका, तो कभी जमुना बाई, तो कभी पसीने से तर-बतर रिक्शा और ठेला खिंचते! कभी ऊँची ऊँची अट्टालिकाआओं पर अपने घरों का तामम भार उठाये! हाँ घर से कोसों दूर, कभी बेघर, तो कभी मजबूर, हाँ सही सूना आपने मजदूर हम मजदूर! ~ अभिषेक अभि Tags: SWARACHIT716G, मजदूर Read more articles Previous Postलाल हरी चूड़ियांNext Postतीन कविताएँ- विचारवान, व्याकुल हृदय, हकीकत क्या है Leave a Reply Cancel replyCommentEnter your name or username to comment Enter your email address to comment Enter your website URL (optional) Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page. Δ You Might Also Like मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम April 2, 2020 मैं एक मजदूर हूं May 18, 2020 हाथी और दर्जी January 14, 2020 झूठा कारोबार January 7, 2020 सिमटती यादें September 30, 2019 मिलकर कदम बढ़ाना होगा March 22, 2020